Bhagavad Gita chapter 1 text 36
Day 19 ( January 19 )
TEXT 36
pāpam evāśrayed asmān
hatvaitān ātatāyinaḥ
tasmān nārhā vayaṁ hantuṁ
dhārtarāṣṭrān sa-bāndhavān
sva-janaṁ hi kathaṁ hatvā
sukhinaḥ syāma mādhava
SYNONYMS
pāpam—vices; eva—certainly; āśrayet—must take upon; asmān—us; hatvā—by killing; etān—all these; ātatāyinaḥ—aggressors; tasmāt—therefore; na—never; arhāḥ—deserving; vayam—us; hantum—to kill; dhārtarāṣṭrān—the sons of Dhṛtarāṣṭra; svabāndhavān—along with friends; svajanam—kinsmen; hi—certainly; katham—how; hatvā—by killing; sukhinaḥ—happy; syāma—become; mādhava—O Kṛṣṇa, husband of the goddess of fortune.
TRANSLATION
Sin will overcome us if we slay such aggressors. Therefore it is not proper for us to kill the sons of Dhṛtarāṣṭra and our friends. What should we gain, O Kṛṣṇa, husband of the goddess of fortune, and how could we be happy by killing our own kinsmen?
PURPORT
According to Vedic injunctions there are six kinds of aggressors: 1) a poison giver, 2) one who sets fire to the house, 3) one who attacks with deadly weapons, 4) one who plunders riches, 5) one who occupies another's land, and 6) one who kidnaps a wife. Such aggressors are at once to be killed, and no sin is incurred by killing such aggressors. Such killing of aggressors is quite befitting for any ordinary man, but Arjuna was not an ordinary person. He was saintly by character, and therefore he wanted to deal with them in saintliness. This kind of saintliness, however, is not for a kṣatriya. Although a responsible man in the administration of a state is required to be saintly, he should not be cowardly. For example, Lord Rāma was so saintly that people were anxious to live in His kingdom, (Rāma-rājya), but Lord Rāma never showed any cowardice. Rāvaṇa was an aggressor against Rāma because he kidnapped Rāma's wife, Sītā, but Lord Rāma gave him sufficient lessons, unparalleled in the history of the world. In Arjuna's case, however, one should consider the special type of aggressors, namely his own grandfather, own teacher, friends, sons, grandsons, etc. Because of them, Arjuna thought that he should not take the severe steps necessary against ordinary aggressors. Besides that, saintly persons are advised to forgive. Such injunctions for saintly persons are more important than any political emergency. Arjuna considered that rather than kill his own kinsmen for political reasons, it would be better to forgive them on grounds of religion and saintly behavior. He did not, therefore, consider such killing profitable simply for the matter of temporary bodily happiness. After all, kingdoms and pleasures derived therefrom are not permanent, so why should he risk his life and eternal salvation by killing his own kinsmen? Arjuna's addressing of Kṛṣṇa as "Mādhava," or the husband of the goddess of fortune, is also significant in this connection. He wanted to point out to Kṛṣṇa that, as husband of the goddess of fortune, He should not have to induce Arjuna to take up a matter which would ultimately bring about misfortune. Kṛṣṇa, however, never brings misfortune to anyone, to say nothing of His devotees.
अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
श्लोक 1 . 36
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः |
तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्सबान्धवान् |
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव || ३६ ||
पापम् - पाप; एव – निश्चय ही; आश्र्येत् – लगेगा; अस्मान् – हमको; हत्वा – मारकर; एतान् – इन सब; आततायिनः – आततायियों को; तस्मात् – अतः; न – कभी नहीं; अर्हाः – योग्य; वयम् – हम; हन्तुम – मारने के लिए; धार्तराष्ट्रान् – धृतराष्ट्र के पुत्रों को; स-बान्धवान् – उनके मित्रों सहित; स्व-जनम् – कुटुम्बियों को; हि – निश्चय ही; कथम् – कैसे; हत्वा – मारकर; सुखिनः – सुखी; स्याम – हम होंगे; माधव – हे लक्ष्मीपति कृष्ण |
भावार्थ
यदि हम ऐसे आततायियों का वध करते हैं तो हम पर पाप चढ़ेगा, अतः यह उचित नहीं होगा कि हम धृतराष्ट्र के पुत्रों तथा उनके मित्रों का वध करें | हे लक्ष्मीपति कृष्ण! इससे हमें क्या लाभ होगा? और अपने ही कुटुम्बियों को मार कर हम किस प्रकार सुखी हो सकते हैं?
तात्पर्य
वैदिक आदेशानुसार आततायी छः प्रकार के होते हैं – (१) विष देने वाला, (२) घर में अग्नि लगाने वाला, (३) घातक हथियार से आक्रमण करने वाला, (४) धन लूटने वाला, (५) दूसरे की भूमि हड़पने वाला, तथा (६) पराई स्त्री का अपहरण करने वाला | ऐसे आततायियों का तुरन्त वध कर देना चाहिए क्योंकि इनके वध से कोई पाप नहीं लगता | आततायियों का इस तरह वध करना किसी सामान्य व्यक्ति को शोभा दे सकता है किन्तु अर्जुन कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है | वह स्वभाव से साधु है अतः वह उनके साथ साधुवत् व्यवहार करना चाहता था | किन्तु इस प्रकार का व्यवहार क्षत्रिय के लिए उपयुक्त नहीं है | यद्यपि राज्य के प्रशासन के लिए उत्तरदायी व्यक्ति को साधु प्रकृति का होना चाहिए किन्तु उसे कायर नहीं होना चाहिए | उदाहरणार्थ, भगवान् राम इतने साधु थे कि आज भी लोग रामराज्य में रहना चाहते हैं किन्तु कभी कायरता प्रदर्शित नहीं की | रावण आततायी था क्योंकि वह राम कि पत्नी सीता का अपहरण करके ले गया था किन्तु राम ने उसे ऐसा पाठ पढ़ाया जो विश्र्व-इतिहास में बेजोड़ है | अर्जुन के प्रसंग में विशिष्ट प्रकार के आततायियों से भेंट होती है – ये हैं उसके निजी पितामह, आचार्य, मित्र, पुत्र, पौत्र इत्यादि | इसीलिए अर्जुन ने विचार किया कि उनके प्रति वह सामान्य आततायियों जैसा कटु व्यवहार न करे | इसके अतिरिक्त, साधु पुरुषों को तो क्षमा करने की सलाह दी जाती है | साधु पुरुषों के लिए ऐसे आदेश किसी राजनीतिक आपातकाल से अधिक महत्त्व रखते हैं | इसीलिए अर्जुन ने विचार किया कि राजनीतिक कारणों से स्वजनों को मार कर वह अपने जीवन तथा शाश्र्वत मुक्ति को संकट में क्यों डाले? अर्जुन द्वारा ‘कृष्ण’ को ‘माधव’ अथवा ‘लक्ष्मीपति’ के रूप में सम्बोधित करना भी सार्थक है | वह लक्ष्मीपति कृष्ण को यह बताना चाह रहा था कि वे उसे ऐसा काम करने के लिए प्रेरित न करें, जिससे अनिष्ट हो | किन्तु कृष्ण कभी भी किसी का अनिष्ट नहीं चाहते, भक्तों का तो कदापि नहीं |
View
like
Share