Bhagavad Gita chapter 1 text 29
Day 15 ( January 15 )
TEXT 29
vepathuś ca śarīre me
roma-harṣaś ca jāyate
gāṇḍīvaṁ sraṁsate hastāt
tvak caiva paridahyate
SYNONYMS
vepathuḥ—trembling of the body; ca—also; śarīre—on the body; me—my; roma-harṣaḥ—standing of hair on end; ca—also; jāyate—is taking place; gāṇḍīvam—the bow of Arjuna; sraṁsate—is slipping; hastāt—from the hands; tvak—skin; ca—also; eva—certainly; paridahyate—burning.
TRANSLATION
My whole body is trembling, and my hair is standing on end. My bow Gāṇḍīva is slipping from my hand, and my skin is burning.
PURPORT
There are two kinds of trembling of the body, and two kinds of standings of the hair on end. Such phenomena occur either in great spiritual ecstasy or out of great fear under material conditions. There is no fear in transcendental realization. Arjuna's symptoms in this situation are out of material fear—namely, loss of life. This is evident from other symptoms also; he became so impatient that his famous bow Gāṇḍīva was slipping from his hands, and, because his heart was burning within him, he was feeling a burning sensation of the skin. All these are due to a material conception of life.
अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
श्लोक 1 . 29
वेपथुश्र्च शरीरे मे रोमहर्षश्र्च जायते |
गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते || २९ ||
वेपथुः – शरीर का कम्पन; च – भी; शरीरे – शरीर में; मे – मेरे; रोम-हर्ष – रोमांच; च – भी; जायते – उत्पन्न हो रहा है; गाण्डीवम् – अर्जुन का धनुष; गाण्डीव; स्त्रंसते – छूट या सरक रहा है; हस्तात् – हाथ से; त्वक् – त्वचा; च – भी; एव – निश्चय ही; परिदह्यते – जल रही है |
भावार्थ
मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है |
तात्पर्य
शरीर में दो प्रकार का कम्पन होता है और रोंगटे भी दो प्रकार से खड़े होते हैं | ऐसा या तो आध्यात्मिक परमानन्द के समय या भौतिक परिस्थितियों में अत्यधिक भय उत्पन्न होने पर होता है | दिव्य साक्षात्कार में कोई भय नहीं होता | इस अवस्था में अर्जुन के जो लक्षण हैं वे भौतिक भय अर्थात् जीवन कि हानि के कारण हैं | अन्य लक्षणो से भी यह स्पष्ट है; वह इतना अधीर हो गया कि उसका विख्यात धनुष गाण्डीव उसके हाथों से सरक रहा था और उसकी त्वचा में जलन उत्पन्न हो रही थी | ये सब लक्षण देहात्मबुद्धि से जन्य हैं |
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