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कार्तिक महात्मयः

कार्तिक महात्मयः

( श्रील गोपालभट् गोस्वामी कृत हरि भक्ति विलास के सोलहवें विलास के पहले खण्ड से ) स्कन्ध पुराण में कहा गया है- “ समस्त तीर्थ स्थलों में स्नान करने , दान देने आदि से कार्तिक व्रत पालन की तुलना में एक लाखवाँ फल भी प्राप्त नहीं होता । पद्मपुराण में कहा गया है- " बारह महीनों में से कार्तिक मास भगवान् को सर्वाधिक प्रिय है । इस मास में यदि कोई भगवान् विष्णु की थोड़ी सी भी पूजा करता है तो कार्तिक मास उसे भगवान् विष्णु के दिव्य धाम में निवास प्रदान करता है ।

" कार्तिक महिने में मात्र एक दीपक अर्पित करने से भगवान् कृष्ण प्रसन्न हो जाते है । भगवान् कृष्ण ऐसे व्यक्ति का भी गुणगान करते है जो दीपक जलाकर अन्यों को अर्पित करने के लिए देता है । " हे ऋषियों में श्रेष्ठ , कार्तिक मास में भगवान् हरि की महिमाओं का श्रवण करने वाला व्यक्ति सैकड़ों लाखो जन्मों के कष्टों से मुक्त हो जाता है । " कार्तिक महिने में जो व्यक्ति स्नान करके रात्रि जागरण करता है , दीपक अर्पित करता है और तुलसी वन की रक्षा करता है , वह भगवान् विष्णु के समान आध्यात्मिक देह प्राप्त करता है । "

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कार्तिक मास उत्सव ऊखल - बंधन लीला :

श्री विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर के अनुसार कार्तिक मास में दीपावली के दिन ही भगवान् ने दामोदर लीला की , जिसका विवरण श्रीमद्भागवतम् के दशम् स्कन्ध में आता है । इस लीला में बाल - कृष्ण माखन की मटकियाँ फोड़कर माँ यशोदा को क्रोधित कर देते है । आवेश में आकर जैसे ही यशोदा माता उन्हें दण्ड देने के लिए खड़ी होती है तभी कृष्ण वहाँ से भाग जाते है । बहुत परिश्रम के पश्चात् अन्ततः यशोदा माता कृष्ण को पकड़ने में सफल होती है और उन्हें ऊखल से बाँधने का प्रयास करती है । दुर्भाग्यवश , जब रस्सी को गाँठ लगाने का समय आया तो वह रस्सी लम्बाई में दो अंगुली छोटी पड़ गई । जब यशोदा मैया ने उसमें और रस्सी जोड़कर श्रीकृष्ण को बाँधने का प्रयास किया तो वह पुनः दो अँगुली छोटी रही । वह बार - बार प्रयास कर रही थी तथा रस्सी बार - बार दो अँगुली छोटी पड़ रही थी । अंततः वे बहुत थक गई तथा श्रीकृष्ण ने अपनी स्नेहमयी माँ को थकी देखकर बँधना स्वीकार कर लिया और उनका नाम पड़ा- ' दामोदर ' अर्थात जिनका उदर ( पेट ) दाम ( रस्सी ) से बँध गया । यह लीला दर्शाती है कि पूर्ण पुरूषोत्तम भगवान् कृष्ण को केवल प्रेम के बन्धन द्वारा ही बाँधा जा सकता है । जब यशोदा मैया श्रीकृष्ण को बाँधकर घर के अन्य कार्यों में व्यस्त हो गई , तो श्रीकृष्ण ने दो यमुलार्जुन पेड़ देखे । वे वास्तव में कुबेर के दो पुत्र नलकूबर तथा मणिग्रीव थे , जो नारद् मुनि द्वारा शापित किये गए थे और पेड़ बने हुए थे । श्री कृष्ण अपनी अहैतुकी कृपा से नारद मुनि की इच्छा पूर्ति के लिए उनकी ओर बढ़े ।

 

                                 कार्तिक में भक्ति करना

कार्तिक में भक्ति करना पद्म पुराण में कहा गया है कि अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार हर व्यक्ति को चाहिए कि भगवान् के विभिन्न उत्सवों एवं समारोहों को अवश्य मनाये । इन सर्वाधिक महत्वपूर्ण उत्सवों में एक उत्सव है- ' ऊर्जा - व्रत ' । यह कार्तिक ( अक्टूबर - नवम्बर ) मास में मनाया जाता है । इस उत्सव में विशेषतया वृन्दावन में दामोदर रूप में भगवान् के अर्चाविग्रह की पूजा का विशेष कार्यक्रम होता है । दामोदर का संदर्भ है , अपनी माता यशोदा द्वारा कृष्ण को रस्सी से बाँधा जाना । कहा जाता है कि जिस प्रकार भगवान् दामोदर अपने भक्तों को अत्यन्त प्रिय है उसी प्रकार दामोदर मास अर्थात् कार्तिक मास भी उन्हें अति प्रिय है । 

कार्तिक मास में ' ऊर्जा - व्रत ' के समय मथुरा में भक्ति करने की विशेष संस्तुति की जाती है । आज भी उनके भक्त इस प्रथा का पालन करते है । वे मथुरा या वृन्दावन में पूरे कार्तिक मास में भक्ति करने के उद्देश्य से वहाँ जाकर ठहरते है । पद्म - पुराण में कहा गया है ' भगवान् भक्त को मुक्ति या भौतिक सुख तो दे सकते है , किन्तु भक्तगण कार्तिक मास में मथुरा में रह कर कुछ भक्ति कर लेने पर ही भगवान् की शुद्ध भक्ति प्राप्त करना चाहते हैं । तात्पर्य यह है कि भगवान उन सामान्य व्यक्तियों को भक्ति नहीं प्रदान करते , जो भक्ति के विषय में निष्ठावान नहीं है । किन्तु ऐसे निष्ठारहित व्यक्ति भी यदि कार्तिक

मास में विशेषतया मथुरा मण्डल में रह कर विधिपूर्वक भक्ति करते है , तो उन्हें भगवान् की व्यक्तिगत सेवा प्राप्त होती है । ( भक्तिरसामृत सिन्धु , अध्याय 12 )

 

                     संक्षिप्त रूप में कार्तिक व्रत पालन कैसे करें :-

भूमिकाः -    कार्तिक मास एक विशेष मास है जिसमें राधा दामोदर भगवान की उपासना की जाती है । कार्तिक मास की अधिष्ठात्री देवी श्रीमती राधिका है इसलिए ये मास श्रीकृष्ण को प्रिय है । इस मास में अल्प प्रयास द्वारा राधारानी शीघ्र प्रसन्न हो जाती है , अगर व्यक्ति उनकी आराधना उनके प्रियतम दामोदर के साथ करता है ।

प्रार्थनाः -  " हे जनार्दन , हे दामोदर , हे देव , आप जोकि श्री राधिका सहित हैं ! कार्तिक मास में , मैं आपकी प्रसन्नता हेतु , प्रत्येक दिन प्रातः जल्दी स्नान करूँगा । "

" हे गोपिकाओं ! आपकी कृपा द्वारा राधा कृष्ण मेरे कार्तिक व्रत से प्रसन्न हो ' ।

  1. ब्रह्म मुहूर्त तक प्रत्येक दिन उठ जायें तथा स्नान करके , जप एवं मंगल आरती में शामिल हों ।

  2. श्रीमद्भागवतम् श्रवण करें , विशेषकर राधा - कृष्ण की वृंदावन लीलाएं । संभव हो तो श्रवण वैष्णवों के सान्ध्यि में करें |

  3.  परिवार के समस्त सदस्यों सहित अधिकाधिक हरिनाम का जप - कीर्तन करें ।

  4.  तुलसी जी की आरती , वृंदावन में नित्यवास एवं श्रीराधा - कृष्ण युगल चरणारविन्दों की सेवा की अभिलाषा के साथ करें ।

  5.  राधा कृष्ण को नित्य दीप अपर्ण करें एवं दामोदराष्टकम् पढ़ें ( अर्थपर मनन करतेहुए ) ।

  6.  नित्य यमुना में स्नान एवं वैष्णवों को दान करें ।

  7.  वैष्णवों , वेद - शास्त्रों एवं अन्यों की निन्दा से बचें ।

 

नोट : कार्तिक मास में अपनी किसी भी एक प्रिय खाद्य वस्तु का त्याग करने का प्रयत्न करें । कार्तिक में उड़द् दाल वर्जित है । इस मास में विशेषतः भगवान् श्री कृष्ण को दीप - दान द्वारा प्रसन्न करने हेतु आप निकटतम इस्कॉन मन्दिर में सांय 7-8 बजे तक जा सकते हैं अथवा प्रतिदिन अपने घर पर अथवा निकट के मन्दिर में दीपक अर्पण कर सकते हैं ।

 

कार्तिक व्रत पारण:-

मास के अन्त में प्रातः राधा - कृष्णा की आरती करें एवं अपने संपूर्ण व्रत की तपस्या को राधा कृष्ण की प्रसन्ता हेतु अर्पित करें । वैष्णवों का सम्मान करते हुए उन्हें उपहार , दान इत्यादि देकर सुन्दर स्वादिष्ट प्रसाद अर्पित करें । इसके उपरान्त अपने व्रत का पारण उन वस्तुओं को ग्रहण करते हुए करे जिनका त्याग ( उड़द् , मिठाई या अन्य वस्तु ) आपने कार्तिक व्रत में किया था । महामंत्र का गान करें एवं संपूर्ण कार्तिक में व्यतीन किए हुए राधा - कृष्ण के स्मरण रूपी रसमयी अनुभव का आस्वादन करें ।

प्रतिदिन दीप - दान ( अर्पण ) करने की विधिः

1. सर्वप्रथम भगवान् की बंधन - लीला अथवा राधा कृष्ण के चित्र को सुंदरता के साथ अपने घर के मन्दिर में अथवा किसी अन्य स्वच्छ स्थान पर विराजमान करें । सायं 7 बजे अपने परिवार के सभी सदस्यों को वहाँ एकत्रित करें । प्रति व्यक्ति एक घी ( संभव हो तो देसी गाय का घी उपयोग करें ) के दीपक की व्यवस्था रखे । मिटी के छोटे दीपक ठीक रहेंगें । प्रतिदिन नये दीपक का प्रयोग करें । घी के स्थान पर तिल का तेल भी प्रयोग किया जा सकता है ।

2. आगे पेज पर दी गयी प्रार्थना ' दामोदराष्टकम् ' को सभी सदस्य पढ़ने का प्रयास करें । साथ ही साथ बारी से हर सदस्य अपने अपने दीपक द्वारा आरती करे । संस्कृत अगर नहीं पढ़ पाएं तो बाद में सभी हिन्दी अनुवाद को पढ़े । यह प्रार्थना आप इस्कॉन मन्दिर से ऑडियो सीडी के रूप में लेकर प्रतिदिन आरती के दौरान सुन सकते है ।

3. तत्पश्चात् दिव्य आनन्द की अनुभूति के लिए कुछ देर तक हरे कृष्ण महामंत्र का सम्मिलित रूप से कीर्तन करें । नोट : आरती के दौरान कमरे में दिव्य वातावरण के लिए कम से कम बिजली का प्रकाश ( लाइटों ) का प्रयोग करें । अगर आप निकटतम इस्कॉन मन्दिर में आकर इस आरती को साक्षात देखें तो आपका उत्साह एवं आनन्द और बढ़ेगा । अपने मित्रों एवं सम्बन्धियों को भी दीप दान की विधि एवं महत्व के बारे में अवश्य बताएँ एवं प्रेरित करें ।

 

 

 

 

 

 

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