Bhagavad Gita chapter 1 text 3,4,5
Day 2 ( January 2 )
TEXT 3
paśyaitāṁ pāṇḍu-putrāṇām
ācārya mahatīṁ camūm
vyūḍhāṁ drupada-putreṇa
tava śiṣyeṇa dhīmatā
SYNONYMS
paśya—behold; etām—this; pāṇḍu-putrāṇām—of the sons of Pāṇḍu; ācārya—O teacher; mahatīm—great; camūm—military force; vyuḍham—arranged; drupada-putreṇa—by the son of Drupada; tava—your; śiṣyeṇa—disciple; dhīmatā—very intelligent.
TRANSLATION
O my teacher, behold the great army of the sons of Pāṇḍu, so expertly arranged by your intelligent disciple, the son of Drupada.
PURPORT
Duryodhana, a great diplomat, wanted to point out the defects of Droṇācārya, the great brāhmaṇa commander-in-chief. Droṇācārya had some political quarrel with King Drupada, the father of Draupadī, who was Arjuna's wife. As a result of this quarrel, Drupada performed a great sacrifice, by which he received the benediction of having a son who would be able to kill Droṇācārya. Droṇācārya knew this perfectly well, and yet, as a liberal brāhmaṇa, he did not hesitate to impart all his military secrets when the son of Drupada, Dhṛṣṭadyumna, was entrusted to him for military education. Now, on the Battlefield of Kurukṣetra, Dhṛṣṭadyumna took the side of the Pāṇḍavas, and it was he who arranged for their military phalanx, after having learned the art from Droṇācārya. Duryodhana pointed out this mistake of Droṇācārya's so that he might be alert and uncompromising in the fighting. By this he wanted to point out also that he should not be similarly lenient in battle against the Pāṇḍavas, who were also Droṇācārya's affectionate students. Arjuna, especially, was his most affectionate and brilliant student. Duryodhana also warned that such leniency in the fight would lead to defeat.
TEXT 4
atra śūrā maheṣv-āsā
bhīmārjuna-samā yudhi
yuyudhāno virāṭaś ca
drupadaś ca mahā-rathaḥ
SYNONYMS
atra—here; śūrāḥ—heroes; maheṣvāsāḥ—mighty bowmen; bhīma-arjuna—Bhīma and Arjuna; samāḥ—equal; yudhi—in the fight; yuyudhānaḥ—Yuyudhāna; virāṭaḥ—Virāṭa; ca—also; drupadaḥ—Drupada; ca—also; mahārathaḥ—great fighter.
TRANSLATION
Here in this army there are many heroic bowmen equal in fighting to Bhīma and Arjuna; there are also great fighters like Yuyudhāna, Virāṭa and Drupada.
PURPORT
Even though Dhṛṣṭadyumna was not a very important obstacle in the face of Droṇācārya's very great power in the military art, there were many others who were the cause of fear. They are mentioned by Duryodhana as great stumbling blocks on the path of victory because each and every one of them was as formidable as Bhīma and Arjuna. He knew the strength of Bhīma and Arjuna, and thus he compared the others with them.
TEXT 5
dhṛṣṭaketuś cekitānaḥ
kāśirājaś ca vīryavān
purujit kuntibhojaś ca
śaibyaś ca nara-puṅgavaḥ
SYNONYMS
dhṛṣṭaketuḥ—Dhṛṣṭaketu; cekitānaḥ—Cekitāna; kāśirājaḥ—Kaśirāja; ca—also; vīryavān—very powerful; purujit—Purujit; kuntibhojaḥ—Kuntibhoja; ca—and; śaibyaḥ—Śaibya; ca—and; nara-puṅgavaḥ—heroes in human society.
TRANSLATION
There are also great, heroic, powerful fighters like Dhṛṣṭaketu, Cekitāna, Kāśirāja, Purujit, Kuntibhoja and Śaibya.
अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
श्लोक 1 . 3
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् |
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता || ३ ||
पश्य- देखिये;एतम्- इस;पाण्डु-पुत्राणाम्- पाण्डु के पुत्रों की;आचार्य-हे आचार्य (गुरु);महतीम्- विशाल;चमूम्- सेना को;व्यूढाम्- व्यवस्थित;द्रुपद-पुत्रेण- द्रुपद के पुत्र द्वारा;तव- तुम्हारे;शिष्येण- शिष्य द्वारा;धी-मता- अत्यन्त बुद्धिमान ।
भावार्थ
हे आचार्य! पाण्डुपुत्रों की विशाल सेना को देखें, जिसे आपके बुद्धिमान् शिष्य द्रुपद के पुत्र ने इतने कौशल से व्यवस्थित किया है ।
तात्पर्य
परम राजनीतिज्ञ दुर्योधन महान ब्राह्मण सेनापति द्रोणाचार्य के दोषों को इंगित करना चाहता था । अर्जुन की पत्नी द्रौपदी के पिता राजा द्रुपद के साथ द्रोणाचार्य का कुछ राजनीतिक झगड़ा था । इस झगड़े के फलस्वरूप द्रुपद ने एक महान यज्ञ सम्पन्न किया जिससे उसे एक ऐसा पुत्र प्राप्त होने का वरदान मिला जो द्रोणाचार्य का वध कर सके । द्रोणाचार्य इसे भलीभाँति जानता था किन्तु जब द्रुपद का पुत्र धृष्ट द्युम्न युद्ध-शिक्षा के लिए उसको सौंपा गया तो द्रोणाचार्य को उसे अपने सारे सैनिक रहस्य प्रदान करने में कोई झिझक नहीं हुई । अब धृष्टद्युम्न कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में पाण्डवों का पक्ष ले रहा था और उसने द्रोणाचार्य से जो कला सीखी थी उसी के आधार पर उसने यह व्यूहरचना की थी । दुर्योधन ने द्रोणाचार्य की इस दुर्बलता की ओर इंगित किया जिससे वह युद्ध में सजग रहे और समझौता न करे । इसके द्वारा वह द्रोणाचार्य को यह भी बताना चाह रहा था की कहीं वह अपने प्रिय शिष्य पाण्डवों के प्रति युद्ध में उदारता न दिखा बैठे । विशेष रूप से अर्जुन उसका अत्यन्त प्रिय एवं तेजस्वी शिष्य था । दुर्योधन ने यह भी चेतावनी दी कि युद्ध में इस प्रकार की उदारता से हार ह सकती है ।
अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
श्लोक 1 . 4
अत्र श्रूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि |
युयुधानो विराटश्र्च द्रुपदश्र्च महारथः || ४ ||
अत्र- यहाँ;शूराः- वीर;महा-इषु-आसा- महान धनुर्धर;भीम-अर्जुन- भीम तथा अर्जुन;समाः- के समान;युधि- युद्ध में;युयुधानः- युयुधान;विराटः- विराट;च- भी;द्रुपदः- द्रुपद;च- भी;महारथः- महान योद्धा ।
भावार्थ
इस सेना में भीम तथा अर्जुन के समान युद्ध करने वाले अनेक वीर धनुर्धर हैं - यथा महारथी युयुधान, विराट तथा द्रुपद ।
तात्पर्य
यद्यपि युद्धकला में द्रोणाचार्य की महान शक्ति के समक्ष धृष्टदयुम्न महत्त्वपूर्ण बाधक नहीं था किन्तु ऐसे अनेक योद्धा थे जिनसे भय था । दुर्योधन इन्हें विजय-पथ में अत्यन्त बाधक बताता है क्योंकि इनमें से प्रत्येक योद्धा भीम तथा अर्जुन के समान दुर्जेय था । उसे भीम तथा अर्जुन के बल का ज्ञान था, इसीलिए वह अन्यों की तुलना इन दोनों से करता है ।
अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
श्लोक 1 . 5
धृष्टकेतुश्र्चेकितानः काशिराजश्र्च वीर्यवान् |
पुरुजित्कुन्तिभोजश्र्च शैब्यश्र्च नरपुङ्गवः || ५ ||
धृष्टकेतु:- धृष्टकेतु;चेकितानः- चेकितान;काशिराजः- काशिराज;च- भी;वीर्यवान्- अत्यन्त शक्तिशाली;पुरुजित्- पुरुजित्;कुन्तिभोजः- कुन्तिभोज;च- तथा;शैब्यः- शैब्य;च- तथा;नरपुङ्गवः- मानव समाज के वीर ।
भावार्थ
इनके साथ ही धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज, पुरुजित्, कुन्तिभोज तथा शैब्य जैसे महान शक्तिशाली योद्धा भी हैं ।
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