Bhagavad Gita chapter 1 text 13-14
Day 6 ( January 6 )
TEXT 13
tataḥ śaṅkhāś ca bheryaś ca
paṇavānaka-gomukhāḥ
sahasaivābhyahanyanta
sa śabdas tumulo 'bhavat
SYNONYMS
tataḥ—thereafter; śaṅkhāḥ—conchshells; ca—also; bheryaḥ—bugles; ca—and; paṇava-ānaka—trumpets and drums; go-mukhāḥ—horns; sahasā—all of a sudden; eva—certainly; abhyahanyanta—being simultaneously sounded; saḥ—that; śabdaḥ—combined sound; tumulaḥ—tumultuous; abhavat—became.
TRANSLATION
After that, the conchshells, bugles, trumpets, drums and horns were all suddenly sounded, and the combined sound was tumultuous.
TEXT 14
tataḥ śvetair hayair yukte
mahati syandane sthitau
mādhavaḥ pāṇḍavaś caiva
divyau śaṅkhau pradadhmatuḥ
SYNONYMS
tataḥ—thereafter; śvetaiḥ—by white; hayaiḥ—horses; yukte—being yoked with; mahati—in the great; syandane—chariot; sthitau—so situated; mādhavaḥ—Kṛṣṇa (the husband of the goddess of fortune); pāṇḍavaḥ—Arjuna (the son of Pāṇḍu); ca—also; eva—certainly; divyau—transcendental; śaṅkhau—conchshells; pradadhmatuḥ—sounded.
TRANSLATION
On the other side, both Lord Kṛṣṇa and Arjuna, stationed on a great chariot drawn by white horses, sounded their transcendental conchshells.
PURPORT
In contrast with the conchshell blown by Bhīṣmadeva, the conchshells in the hands of Kṛṣṇa and Arjuna are described as transcendental. The sounding of the transcendental conchshells indicated that there was no hope of victory for the other side because Kṛṣṇa was on the side of the Pāṇḍavas. Jayas tu pāṇḍu-putrāṇāṁ yeṣāṁ pakṣe janārdanaḥ. Victory is always with persons like the sons of Pāṇḍu because Lord Kṛṣṇa is associated with them. And whenever and wherever the Lord is present, the goddess of fortune is also there because the goddess of fortune never lives alone without her husband. Therefore, victory and fortune were awaiting Arjuna, as indicated by the transcendental sound produced by the conchshell of Viṣṇu, or Lord Kṛṣṇa. Besides that, the chariot on which both the friends were seated was donated by Agni (the fire-god) to Arjuna, and this indicated that this chariot was capable of conquering all sides, wherever it was drawn over the three worlds.
अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
श्लोक 1 . 13
ततः शङ्खाश्र्च भेर्यश्र्च पणवानकगोमुखाः |
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोSभवत् || १३ ||
ततः – तत्पश्चात्; शङखाः – शंख; भेर्यः – बड़े-बड़े ढोल, नगाड़े; च – तथा; पणव-आनक – ढोल तथा मृदंग; गोमुखाः – शृंग; सहसा – अचानक; एव – निश्चय ही; अभ्यहन्यन्त – एकसाथ बजाये गये; सः – वह; शब्दः – समवेत स्वर; तुमुलः – कोलाहलपूर्ण; अभवत् – हो गया |
भावार्थ
तत्पश्चात् शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा सींग सहसा एकसाथ बज उठे | वह समवेत स्वर अत्यन्त कोलाहलपूर्ण था |
अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
श्लोक 1 . 14
ततः श्र्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ |
माधवः पाण्डवश्र्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः || १४ ||
ततः – तत्पश्चात्; श्र्वैतैः – श्र्वेत; हयैः – घोड़ों से; युक्ते – युक्त; महति – विशाल; स्यन्दने – रथ में; स्थितौ – आसीन; माधवः – कृष्ण (लक्ष्मीपति) ने; पाण्डव – अर्जुन (पाण्डुपुत्र) ने; च – तथा; एव – निश्चय ही; दिव्यौ – दिव्य; शङखौ – शंख; प्रदध्मतुः – बजाये |
भावार्थ
दूसरी ओर से श्र्वेत घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले विशाल रथ पर आसीन कृष्ण तथा अर्जुन ने अपने-अपने दिव्य शंख बजाये |
तात्पर्य
भीष्मदेव द्वारा बजाये गये शंख कि तुलना में कृष्ण तथा अर्जुन के शंखों को दिव्य कहा गया है | दिव्य शंखों के नाद से यह सूचित हो रहा था कि दूसरे पक्ष की विजय की कोई आशा न थी क्योंकि कृष्ण पाण्डवों के पक्ष में थे | जयस्तु पाण्डुपुत्राणां येषां पक्षे जनार्दनः – जय सदा पाण्डु के पुत्र-जैसों कि होती है क्योंकि भगवान् कृष्ण उनके साथ हैं | और जहाँ जहाँ भगवान् विद्यमान हैं, वहीँ वहीँ लक्ष्मी भी रहती हैं क्योंकि वे अपने पति के बिना नहीं रह सकतीं | अतः जैसा कि विष्णु या भगवान् कृष्ण के शंख द्वारा उत्पन्न दिव्य ध्वनि से सूचित हो रहा था, विजय तथा श्री दोनों ही अर्जुन की प्रतीक्षा कर रही थीं | इसके अतिरिक्त, जिस रथ में दोनों मित्र आसीन थे वह अर्जुन को अग्नि देवता द्वारा प्रदत्त था और इससे सूचित हो रहा था कि तीनों लोकों में जहाँ कहीं भी यह जायेगा, वहाँ विजय निश्चित है |
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